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Sunday, July 13

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यौन उत्पीड़न को साबित करने शारीरिक चोट दिखाना जरूरी नहीं

 

बिलासपुर। रायगढ़ जिले की नौ वर्षीय बालिका के यौन उत्पीड़न के मामले में पॉक्सो एक्ट में आरोपित को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जेल में बंद आरोपित ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने दुष्कर्म के आरोपित की अपील को खारिज करते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने आजीवन कारावास की सजा को 20 साल कठोर कारावास में तब्दील कर दिया है। डिवीजन बेंच ने यह भी कहा है कि पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न को साबित करने के लिए पीड़िता को शारीरिक चोटें दिखाने की आवश्यकता नहीं है और न ही अनिवार्यता है। घटना 1 मई 2020 को हुई, जब नौ वर्षीय लड़की रायगढ़ जिले के अपने गांव में एक प्राथमिक विद्यालय के पास खेल रही थी। पुलिस की पोशाक जैसी खाकी वर्दी पहने अपीलकर्ता ने पीड़िता से संपर्क किया और पुलिसकर्मी होने का दिखावा करते हुए उसे जबरन मोटरसाइकिल पर अगवा कर लिया। पीड़िता को एक सुनसान खेत में ले जाया गया, जहां आरोपित ने उसका यौन उत्पीड़न किया। उसी दिन बाद में पुलिस अधिकारियों ने रोती हुई पीड़िता को युवक द्वारा अपनी मोटरसाइकिल पर ले जाते समय पकड़ लिया। पीड़िता के पिता ने लिखित शिकायत दर्ज कराई और पुलिस ने तमनार पुलिस स्टेशन में तहत प्राथमिकी दर्ज की। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश घरघोड़ा ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा दी।

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