नयी दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं में शिक्षा और उद्योग क्षेत्र के बीच मजबूत संबंधों का उल्लेख करते हुए दे...
नयी दिल्ली । राष्ट्रपति
द्रौपदी मुर्मु ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं में शिक्षा और उद्योग क्षेत्र के
बीच मजबूत संबंधों का उल्लेख करते हुए देश के उच्च शिक्षा संस्थानों के
प्रमुखों से औद्योगिक संस्थानों की प्रमुख हस्तियों के साथ निरंतर विचार
विमर्श करने का सुझाव दिया है। श्रीमती मुर्मु ने मंगलवार को यहां
राष्ट्रपति भवन में उच्च शिक्षण संस्थानों के दो दिन के विजिटर्स सम्मेलन
में समापन संबोधन में कहा कि हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य इस सदी के पूर्वार्ध
के अंत से पहले भारत को विकसित देश बनाना है। इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों
और छात्रों सहित सभी हितधारकों को वैश्विक मानसिकता के साथ आगे बढ़ना होगा।
अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयासों और सहयोग को मजबूत करने से युवा छात्र
21वीं सदी की दुनिया में अपनी और अधिक प्रभावी पहचान बना सकेंगे। उच्च
शिक्षा संस्थानों में उत्कृष्ट शिक्षा की उपलब्धता से विदेश में अध्ययन
करने की प्रवृत्ति कम होगी और युवा प्रतिभाओं का राष्ट्र निर्माण में बेहतर
उपयोग हो सकेगा। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। आत्मनिर्भर होना ही सही मायने में
विकसित, बड़ी और मजबूत अर्थव्यवस्था की पहचान है। शोध और नवाचार पर आधारित
आत्मनिर्भरता हमारे उद्यमों और अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी। ऐसे शोध और
नवाचार को हर संभव सहयोग मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकसित
अर्थव्यवस्थाओं में शिक्षा-उद्योग का संबंध मजबूत दिखाई देता है। उद्योग और
उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच निरंतर आदान-प्रदान के कारण शोध कार्य
अर्थव्यवस्था और समाज की जरूरतों से जुड़ा रहता है। उन्होंने उच्च शिक्षा
संस्थानों के प्रमुखों से आग्रह किया कि वे आपसी हित में औद्योगिक
संस्थानों के वरिष्ठ लोगों के साथ निरंतर विचार-विमर्श करने के लिए
संस्थागत प्रयास करें। उन्होंने कहा कि इससे शोध कार्य करने वाले शिक्षकों
और छात्रों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों की प्रयोगशालाओं
को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक जरूरतों से जोड़ना उनकी
प्राथमिकता होनी चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि
छात्रों की विशेष प्रतिभा और जरूरतों के अनुसार प्रणाली आधारित और लचीली
शिक्षा प्रणाली का होना अनिवार्य और चुनौतीपूर्ण है। इस संदर्भ में निरंतर
सतर्क और सक्रिय रहने की जरूरत है। अनुभव के आधार पर उचित बदलाव होते रहने
चाहिए। ऐसे बदलावों का उद्देश्य छात्रों को सशक्त बनाना होना चाहिए।
श्रीमती मुुर्मु ने कहा कि चरित्रवान, समझदार और योग्य युवाओं के बल पर ही
कोई राष्ट्र सशक्त और विकसित बनता है। शिक्षण संस्थानों में हमारे युवा
छात्रों के चरित्र, विवेक और क्षमता का विकास होता है। उन्होंने विश्वास
व्यक्त किया कि उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुख उच्च शिक्षा के गौरवपूर्ण
आदर्शों को प्राप्त करेंगे और भारत माता के नन्हे-मुन्नों के लिए उज्ज्वल
भविष्य प्रस्तुत करेंगे। सम्मेलन में शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में लचीलापन, कई
प्रवेश और निकास विकल्पों के साथ क्रेडिट शेयरिंग और क्रेडिट ट्रांसफर,
अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयास और सहयोग, अनुसंधान या नवाचार को उपयोगी
उत्पादों और सेवाओं में परिवर्तित करने से संबंधित अनुवाद अनुसंधान और
नवाचार, एनईपी के संदर्भ में प्रभावी छात्र चयन प्रक्रिया और छात्र
विकल्पों का सम्मान और प्रभावी आकलन और मूल्यांकन जैसे विषयों पर विचार
विमर्श किया गया। सम्मेलन में विचार-विमर्श के परिणाम श्रीमती मुर्मु के
समक्ष प्रस्तुत किए गए।
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